मन की बात
*अपने बच्चों को हारना भी सिखाइये और हार को सकारात्मक रूप से लेना* भी वरना वो हलका सा झटका भी न झेल पाएंगे । 1970 के दशक में पैदा हुए अधिकांश बच्चे अपने अभिभावकों से इतनी बार कूटे गए हैं कि मुझे लगता है इनसे मजबूत शायद ही कोई हो । कई बार तो बिना गलती के भी कूट दिए जाते थे। घर में कोई हथियार नहीं बचा जिससे पेला नहीं गया हो चप्पल, फूंकनी, चिमटा, कपडे धोने का दोवना, पानी का पाइप, झाड़ू आदि का प्रयोग हुआ और आज देखो हम अपने बच्चों के एक थप्पड़ भी नहीं मार सकते, जब से एक या दो बच्चों का चलन चल निकला था बस वहीँ से पिटाई कम होते होते बंद हुई है ।
हमारे समय तो पूरा मोहल्ला एक परिवार कि तरह होता था, मोहल्ले के चाचा ताऊ भी मौका मिलते ही हाथ साफ कर लेते थे आज किसी के बच्चे को डाटं भी नहीं सकते ।
हम भी तभी की पैदावार हैं और इतने पक्के हो चुके हैं कि आत्महत्या तो दूर की बात सामने वाले को *आत्महत्या करने पे मजबूर कर दें । जीवन में डिप्रेशन के उतार चढ़ाव देख के इतने ढीट हो चुके हैं कि अब जब भी जीवन में डिप्रेशन वाली सिचुएशन आती है तो सबसे पहले हंसी ही छूटती है*। रामेश्वर साहू 🤣🤣
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