27/5/20

रामेश्वर जी साहू द्वारा मन की बात my villege kunwariya

मन की बात
# *मेरा गाँव* 
आज सुबह-सुबह  फेसबुक देख रहा था  फेसबुक पर एक फोटो  दिखा  फोटो को देख कर मन में  बड़ी दुखद वेदना हुई और मन में  कुछ आया क्या आज मैं  क्यों न बंटवारे पर मन की बात लिखूं 
ये जो तस्वीर है वो दो भाइयों के बीच बंटवारे के बाद बने घर की तस्वीर है। 

*बाप-दादा* के घर की देहलीज को जिस तरह बांटा गया है, वह समाज के हर गांव-घर की असलियत को भी दर्शाता है।

*दरअसल* हम *गांव* के लोग अब जितने खुशहाल दिखते हैं उतने हैं नहीं।

*जमीनों* के रास्ते  के केस, पानी के केस, खेत-मेढ के केस, रास्ते के केस, मुआवजे के केस, ब्याह शादी के झगड़े, दीवार के केस, नालियों की खटपट आपसी मनमुटाव, चुनावी रंजिशों ने समाज को खोखला कर दिया है।
अब गांव वो नहीं रहे 
 जब, बस में गांव की महिला सवारी को देखते ही सीट खाली कर देते थे बच्चे क्या जवान। 
दो चार थप्पड गलती करने पर किसी बुजुर्ग या बाबोसा काकोसा बाबा दाजी   या पड़ोसी ने लगा दिए तो इश्यू नहीं बनता था अब। थप्पड़ दे बदले में सामने वाला लठ लेकर आ जाए

   अब हम पूरी तरह बंटे हुए लोग हैं। गांव में अब एक दूसरे के उपलब्धियों का सम्मान करने वाले, प्यार से सिर पर हाथ रखने वाले लोग संभवत अब मिलने मुश्किल हैं। 
हालात इस कदर खराब है कि अगर पडोसी फलां व्यक्ति को वोट देगा तो हम नहीं देंगे।
इतनी नफरत कहां से आई है समाज के लोगों में ये सोचने और चिंतन का विषय है।
कितने झगडे होते हैं और कितने केस अदालतों व संवैधानिक संस्थाओं में लंबित है इसकी कल्पना भी भयावह है। 

संयुक्त परिवार अब गांवों में एक आध ही हैं, जहां पर भी है वहां पर भी विघटन की कगार पर है छाछ-दूध जगह वहां भी पेप्सी कोका पिलाई जाने लगी है।

हमारा समाज भी बंटा है और शायद अब हम भरपाई की सीमाओ से भी अब बहुत दूर आ गए हैं। अब तो वक्त ही तय करेगा कि हम और कितना बंटेंगे और गिरेंगे !
रामेश्वर साहू कुंवारिया राजसमंद

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