*मन की बात*
एक समय था जब लोग जमीन पर काम करके नेता बनते थे और जनता भी उनकी बात सुनती थी।अब तो *जन्मदिन* और वैवाहिक सालगिरह की बधाइयां दे के कहीं छोटा-मोटा पुण्य 10 ₹5 का खर्चा चाय पानी के लिए पुण्य किया हो तो फोटो सहित डाल कर नेता बना जा रहा है। कुछ तो ऐसे युवा ह्रदय सम्राट बने पड़े है की ₹5 रुपए की ईकलाई जेब में रखकर हर कहीं हर किसी को जन्मदिन की बधाई उनको बधाइयां देने के अलावा कुछ नहीं आता, विचारधारा कैसे आगे बढ़ाना है विपक्ष को कैसे घेरना है ,
*राष्ट्रविरोधियों* को कैसे जनता के सामने बेनकाब करना भविष्य मैं इस पर किसी प्रकार का चिंतन मनन नहीं करते।
बस जन्मदिन,सालगिरह की बधाइयां दे दे कर ही लोग नेता बनने लगे है !
क्यो की सबसे आसान और बिना मेहनत और बिना रिस्क का तरीका है,
बस बड़े भैया को बधाई, दादा को शुभकामना,ये सम्राट वो सम्राट साला नई पीढ़ी की पूरी राजनीति इसी पर टिकी नजर आती है,
*सामाजिक* मुद्दों पर चिंतन मनन विचारधारा, सामाजिक सरोकार सब खत्म बस भैया ,बड़े भैया जिगरी जिगर के टुकड़े लल सा कुलसा मनसा बॉस ,दादा,फलाना ढिकाना को बधाई बधाई ,शादी की बधाई,बच्चे पैदा होने की बधाई ,बाकी राजनीतिक दल तो जन्म से ही चरण चंपू है वो तो है ही *चरणचंप्पू* पर बीजेपी के नए नेताओ में भी ये संक्रमण धीरे धीरे फेल रहा है,
*बधाई* देना गलत नही है देना ही चाहिए पर सिर्फ बधाई बधाई और बाकी मुद्दों पर कोई ज्ञान कोई विचार नही ये गलत है। बधाइयों के साथ *विचारधारा* और मुद्दों पर भी सक्रिय रहना चाहिये पार्टी के बड़े नेता बनकर घूम रहे हैं लोगों को पूछ लिया जाए कि आपके पार्टी का इतिहास तो इधर-उधर झांकने लग जाते हैं और जमीन पर या सोशल मिडिया पर विचारधारा और मुद्दों पर गंदी गालियां लिख कर नेता बनने जा रहे हैं
चिंतन मंथन करना चाहिये ,इससे आपका *वैचारिक* स्तर भी बढ़ेगा और समाज आपके विचारों से अवगत भी हो सकेगा।
पोस्ट अन्यथा में न ले ये आप लोगो के भले के लिए है।
*रामेश्वर साहू* कुंवारिया राजसमंद
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